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Channel: हरा कोना
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पलाश-सेमल के फूल और रंगात्मक प्रतिरोध

उनके चित्रों में वे सेमल और पलाश के चटख फूल रूपायित हो रहे हैं जो उन्होंने अपने बचपन में कभी गांव में देखे थे। ये फूल उनके कैनवास पर बोल्ड स्ट्रोक्स और गहरे रंगों में खिलकर लोगों को आकर्षित कर रहे हैं।...

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यहां पानी चांदनी की तरह चमकता है

कुमार अंबुज की कविताआंधियां चलती हैं और मेरी रेत के ढूह उड़कर मीलों दूर फिर से बन जाते हैं यह मेरी अनश्वरता है यह दिन की चट्टान है जिस पर मैं बैठता हूंप्रतीक्षा और अंधकार। उम्मीद और पश्चातापवासना और...

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ठीक आदमजात-सा बेखौफ़ दिखना चाहता हूँ

क्या हिंदी समाज में एक कवि के जाने का कोई कुछ मतलब बचा रह गया है? जब किसी कविता संग्रह की तीन सौ प्रतियों का एडिशन पाँच सालों में पूरा नहीं बिकता हो तब किसी कवि का लगातार रचते रहना, उसका बीमार हो जाना...

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नजारों से नजरिये तक

इंदौर के चित्रकार-कहानीकार प्रभु जोशी के नए चित्रों को देखकर यह सहज ही कहा जा सकता है कि लैंडस्केप के प्रति उनका फेसिनेशन बरकरार है। विषयों की विविधता और रंग बहुलता के बावजूद उनके नए काम इसलिए...

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जिंदगी से बेदखल पसीने की गंध

मेरे पिता के पसीने की गंध अब भी मेरे मन में बसी है। वे हमेशा पैदल चलते थे और उन्होंने कभी साइकिल तक नहीं चलाई। उनके बचपन का एक फोटो मैंने अब तक संभाल कर रखा है जिसमें वे तीन पहिए की साइकिल पर बैठे हैं।...

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कौन बिकेगा, कौन नहीं?

मंदी का असर चारों तरफ है। इसने कला-जगत पर भी असर किया है। पहला असर तो यही है कि इसका बाजार ठंडा पड़ गया है। दूसरा असर ये हुआ है कि अब यह बहस चल पड़ी है कि कला बाजार में आकृतिमूलक (फिगरेटिव) चित्र...

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पेंटिग्स कौन खरीदेगा?

हरा कोना पर मंदी के मद्देनजर एक पोस्ट लगाई गई थी-कौन बिकेगा, कौन नहीं। ख्यात कार्टूनिस्ट अभिषेक ने उसी पोस्ट के मद्देनजर यह कार्टून खासतौर पर हरा कोना के लिए भेजा है। हरा कोना उनके प्रति गहरा आभार...

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किताब के पास जाना, एक स्त्री के पास जाना है

क्या किताब के पास जाना एक स्त्री देह के पास जाने जैसा है। यह बहुत ही रोमांचक और उत्तेजित करने वाला अनुभव है। स्त्री की तरह ही किताबों में सदियों की करवटें सोयी रहती हैं। एक प्रेमिल निगाह और आत्मीय...

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किताब, देह, स्त्री और सुजाताजी की प्रतिक्रिया

मेरी पोस्ट पर चिट्ठा चर्चा में सुजाताजी ने अपनी विनम्र असहमति जताई है। हरा कोना चिट्ठा चर्चा और सुजाताजी के प्रति आभार प्रकट करते हुए उस असहमति को यहां अविकल प्रस्तुत कर रहा है।स्त्री देह का रहस्य एक...

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मोनालिसा! हम आ रहे हैं!!

वे बरसों से सभी को अपनी ओर खींच रही हैं। विशेषकर चित्रकारों को। उनका चेहरा अलौकिक है, मुस्कान चिर रहस्यमयी। चेहरे और आंखों के भाव इतने विरल और तरल हैं कि हजारों अर्थ निकाले जाते हैं। उनके प्रति मोह...

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जिसके कंधे पर सिर रखकर रो सकें

किताबों पर लिखी जा रही श्रृंखला की दूसरी कड़ीवह कुर्सी अब भी है। उसका एक हत्था ढीला हो चुका है। उसका रंग उड़ चुका है। अब वह ज्यादा कत्थई-भूरी दिखती है। वह सागौन की अच्छी लकड़ी से बनी कुर्सी है। सुबह की...

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पत्ता-पत्ता, जीवन का हर राग गाता रफ्ता-रफ्ता

वहां कैनवास पर पत्ते ही पत्ते हैं। झरते हुए, कभी एक साथ और कभी छितराए हुए। हरे-पीले, नारंगी-नीले, काले-भूरे। उजाले में आकर नाचते हुए, उदास हो कर अंधेरे में डूबते हुए। लगता है जैसे हरे-पीले पत्ते जीवन...

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रात, चंद्रमा, स्त्री और एक किताब ने बचा लिया

दुनिया में हमेशा से कुछ ऐसी चीजें रही हैं, जिसके कारण लोग आत्महत्या करने को विवश हो जाते हैं। और दुनिया में हमेशा से ऐसी चीजें भी रही हैं जो लोगों को आत्महत्या करने से रोक लेती हैं और उन्हें फिर से...

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जिन्हें तुम धन्यवाद देना चाहते हो

कुमार अंबुज की कविता न वह पेड़ बचता है और न वैसी रात फिर आती हैन ओंठ रहते हैं और न पंखुरियां रूपकों और उपमाओं के अर्थ ध्वनित नहीं हो सकतेबारिश जा चुकी है और ये सर्दियां हैं जिनसे सामना हैजीवन में रोज...

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आंगन नहीं, धूप नहीं, खिलखिलाने की आवाजें नहीं

हमारे घर में आंगन था। आंगन में धूप आती थी। सूरज दिखाई देता था। अब घर के ठीक सामने तीन-चार बिल्डिंगें बन जाने से सूरज बारह बजे के पहले दिखाई ही नहीं देता। अब धूप की जगह आंगन में बिल्डिंग की परछाइयां...

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रोज घर से निकलो, रोज घर पहुंच जाओ बच्चो !

यह एक छोटा-सा अनुभव है, जो मैं आपको बताने जा रहा हूं लेकिन इसके पीछे जो दहशत है वह शायद कई सालों की है। और मुझे लगता है शायद मेरी मां इस दहशत से रोज-ब-रोज गुजरती थी। मेरे बेटे मनस्वी, जिसे हम मनु कहते...

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शब्द का संग छूटा तो रंगों ने थाम लिया

वे कविता लिखती हैं लेकिन मन इन दिनों पेंटिंग्स में रमा हुआ है। शब्द का संग छूटता लग रहा है। ऐसे में रंगों ने उनका हाथ थाम लिया है। वे उम्र के उस पड़ाव पर हैं जहां अकसर लोग थककर खामोश हो जाते हैं लेकिन...

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मेरे अरमानों की कसक नीली है

उसे शिकायत है कि मैंने अभी तक उसकी कोई सुंदर और सीधी तस्वीर नहीं उतारी, मेरी मजबूरी है कि मैं सुंदर और सीधी तस्वीर उतार ही नहीं सकता। उसका कहना है कि जिसे मैं मजबूरी कहता हूँ वह दरअसल मेरी कल्पना का...

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धूप एक ख़ूबसूरत जादूगरनी है!

वहाँ धूप फैली हुई थी। ख़ूबसूरत। जिसे छूती उसे ख़ूबसूरत बना देती। गुनगुनी। मुलामय। ऊन का हल्कापन लिए। वह हर जगह थी, घास की नोक पर, तार पर, तार पर सूखते कपड़ों पर, बच्चों की हँसी पर इठलाती, फूलों के खिले...

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मां का मंत्रोच्चार

मैं जब भी मां के बारे में सोचता हूं मुझे मटके में ताजा पानी भरने की आवाज सुनाई देती है। उसकी उम्र उसकी झुर्रियों से ज्यादा उन बर्तनों की खनखनाहट में थी जिसे वह सालों से मांजती चली आ रही थी। भरे-पूरे...

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उड़ते हुए रूई के फाहे

हमारा घर बहुत छोटा था। सदस्य ज्यादा थे। घर के लोगों के हाथ-पैरों पर खरोंचों के निशान थे। हम जब भी घर में आते-जाते तो हमें घर में रखी टूटी आलमारी, कुर्सी, या डिब्बों से खरोंचे लगती थीं। मां ने...

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bahne de mujhe bahne de

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yah jo neela hai!

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yah jo neela hai-2

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